जीवन की भागा-दौड़ी देखो क्या-क्या समय नहीं दिखलाती है,
कभी उंच तो कभी नीच से अवगत तुम्हें कराती है।
कल ही की तो बात है जब हम माँ की गोद में सोया करते थे,
मन चाहे तब हंसा हम करते मन चाहे तब रोया करते थे।
दादा-दादी की परी कहानी नाना-नानी के वो किस्से,
और सपनो में महल बनाना क्या खूब हसीं वो दिन थे।
छुटपन की यारी-दोस्ती में क्या बाहुबल क्या दम था,
इस अटूट रिश्ते का मोल हज़ार अशर्फियों से क्या कम था?
गली-गली हर नुक्कड़ पे घूमकर एक जश्न सा हमने मनाया था,
और ताऊ की छत पर चढ़के न जाने कितनी पतंगों को काट गिराया था।
छोटी-छोटी बातों के सांचों मियन हमने खुशियों को कैसे ढाला था,
हम क्या जाने बहुत जल्द ही ये कठोर वक़्त भी आनेवाला था।
जीवन व्यापन करने को अब हम अपनी खुशियों को पीछे छोड़ चले,
नयी रह-नए पथ-नयी नगरी को अब हम अपने से जोड़ चले।
क्या दोस्त क्या मित्र यहाँ सब नया-नया सा नज़र आता है,
हर चौराहा अब युद्ध के मैदान का आभास कराता है।
माँ की गोद में नींद वो क्या थी अब दो पल चैन से न सोने पाते हैं,
सुबह होते ही फिरसे 'जीवन की भागा-दौड़ी' में जुट जाते हैं।
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loved it!!
ReplyDelete:)